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मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है…..(ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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ज़माना कौन सा बदला चुकाना चाहता है
के मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है.

मुहब्बत के सफ़र में पड़ गया हूँ मैं अकेला
मेरा महबूब भी पीछा छुड़ाना चाहता है.


मेरा दिल दिल है ये पत्थर नहीं है
किसी की जान ले, ये वो खंज़र नहीं है

ये दिल है, बस रिश्ते निभाना चाहता है
के मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है.

ज़माना कौन सा बदला चुकाना चाहता है
के मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है.

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मैं था बदनाम मुझको ग़म नहीं था
न था कुछ पास फिर भी कम नहीं था

ग़म के साये में मुझको दबाना चाहता है
के मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है.

ज़माना कौन सा बदला चुकाना चाहता है
के मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है.

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सनम मेरा बे-मुरव्वत सौदाई निकला
वफ़ा की उम्मीद की, नतीजा बेवफाई निकला

“राज” तुझको ज़माना बस झुकाना चाहता है
के मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है.

ज़माना कौन सा बदला चुकाना चाहता है
के मेरी मौत हर अपना-बेगाना चाहता है.

मुहब्बत के सफ़र में पड़ गया हूँ मैं अकेला
मेरा महबूब भी पीछा छुड़ाना चाहता है.

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