एक मनमौजी की दास्तां
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जो ख्याल थे न कयास थे वही लोग हम से बिछड़ गए
मेरी ज़िन्दगी की जो आस थे वही लोग हमसे बिछड़ गए.
जिन्हें मानता ही नहीं ये दिल, वही लोग हैं मेरे हमसफ़र
मुझे हर तरह से जो रास थे वही लोग हमसे बिछड़ गए.
मुझे लम्हा भर की रफाकतों के अजाब और सतायेंगे
मेरी उम्र भर की जो प्यास थे वही लोग हमसे बिछड़ गए.
ये ख्याल सारे हैं आरजी, ये गुलाब सारे हैं कागज़ी,
गुले आरज़ू की जो बास थे वही लोग हमसे बिछड़ गए.
जिन्हें कर सका न कबूल मैं, वो शरीक राहे सफ़र हुए
जो मेरी तलब मेरी आस थे वही लोग हमसे बिछड़ गए.
ये जो रात दिन मेरे साथ हैं वो हैं अजनबी के अजनबी
वो जो धडकनों की एहसास थे वही लोग हमसे बिछड़ गए.
रफाकात—दोस्ती
Writer —-a net friend (unknown )
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