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क्यूँ खुदा ने मुझे जुदाई बख्श दी? (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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मैंने तो चाहा था फ़क़त प्यार ही तेरा
क्यूँ खुदा ने मुझे जुदाई बख्श दी?


मैं खुश था इन्हीं महफ़िलों में मगर
क्यूँ मेरे दोस्तों मुझे तन्हाई बख्श दी?


हर फर्द को दुनिया में बख्शा वफ़ा तुने
फिर क्यूँ इस गरीब को बेवफाई बख्श दी?


कैसे होता मेरा नाम मशहूर इस ज़माने में
जब पहले ही मेरे नसीब में रुसवाई बख्श दी.


जो खुदादाद थे उन का इम्तिहान लिया
नाखुदाओं को क्यूँ तुने खुदाई बख्श दी?


चाहा था उनसे सुनना इक बात ही फ़क़त
जा “राज” तुझे उनकी दिलरुबाई बख्श दी.

Glossary—-

फ़क़त–Only
फर्द –Individual
खुदादाद–The Believer of God
नाखुदा–Non-believer of God

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