एक मनमौजी की दास्तां
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तेरा आना हवा का झोंका था,
या एक दिलफरेब धोका था.
फिर मिलूंगी ये कहके चल दिए,
मैंने तुम को मगर कितना रोका था.
मैंने कर दिया था अनसुना सबको,
सबने ही मुझको कितना टोका था.
जिस अदा से किया इंकार तुने,
वो अदा भी तो कुछ अनोखा था.
चल दिए तुम भी भ्रम तोड़कर,
मैं तो सिर्फ प्यार का ही भूखा था.
पता तुम्हें भी नहीं शायद “राज”,
आंसुओं को मैंने कैसे रोका था.
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