एक मनमौजी की दास्तां
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आमद है मेरे महबूब का, पलकें बिछाए बैठे हैं
मगन है दिल ख़ुशी से, रौशनी भी जलाये बैठे हैं.
हमें मालूम है आयेंगे वो, कुछ देर हो लेकिन
इसलिए रस्ते पर,अपनी नज़रें जमाये बैठे हैं.
आज बतलायेंगे हम उनको नाराज़गी अपनी
बड़ी मुद्दत से उन पे खार खाए बैठे हैं.
वो हैं महबूब, दिल दुखाने का हक है उन्हें
हम भी रूठेंगे अब ये मंसूबा बनाए बैठे हैं.
कहते है वो की मैं करता नहीं कद्र उनकी
हम उनकी याद में दुनिया भुलाये बैठे हैं.
आएँगे जब तलक मुझ से मिलने वो “राज”
तब तलक यादों की शम्मा जलाये बैठे हैं.
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