एक मनमौजी की दास्तां
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ऐ बादे-सबा कुछ देर ठहर एक मेरा पयाम लेता जा,
तू गुज़रे जो महबूब की गली,उन्हें मेरा सलाम देता जा.
अपनी ठंडी झोंकों से उन्हें तू सुबह-सुबह जगा
दिन गुज़रे उनका बेहतर,तू उनकी बालाएं लेता जा.
वो जन मेरी अंजन है मेरी दिल की हसरत से
पहचान मेरी बतलाने को मेरा नाम लेता जा.
उन्हें तुम दो ख़ुशी जिसे पाकर वो मुस्कुरा पड़ें
जाते-जाते उस मंज़र का मुझको इनाम देता जा.
मैं “राज” तेरी कुर्बत के लिए हूँ बहुत तरसा
बरसा बादल कुछ कुर्बत का तू बादल साथ लेता जा.
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