Menu
blogid : 1994 postid : 328

चल दिए खुदा से मांगने मुराद (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
  • 73 Posts
  • 403 Comments

मुसलसल चीखता हूँ मैं कोई क्यूँ बोलता नहीं,
कहाँ चले गए इस शहर के सारे अफ़राद..
वो देख सकते नहीं एक दुसरे की ख़ुशी
इस लिए चल दिए हैं मांगने खुदा से ये मुराद.


ख़ुशी सिर्फ उनको मिले, दुसरे सिर्फ ग़म उठाएं,
दूजे को ग़म में रखें मुब्तिला ऐसी चलें हवाएं..
उन्हें ग़म देके मुस्कुराएँगे ये सारे नामुराद
इस लिए चल दिए हैं मांगने खुदा से ये मुराद.


गैर की औलाद देख कर जलते हैं शम्मा की तरह,
उनकी तारीफ़ जुबाँ से निकलती है शिकवा की तरह..
राह शोहरत की ही पकड़ें खुद उनकी औलाद
इस लिए चल दिए हैं मांगने खुदा से ये मुराद.


“राज” रोजे-रौशन में भी तुम न जाओ बाहर,
छलनी करदे न तेरा सीना कोई गोली खंज़र..
गुनाहगार खुद को बना चूका है देख अब फौलाद
इस लिए चल दिए हैं मांगने खुदा से ये मुराद.

Glossary:

मुसलसल : लगातार, अफ़राद : लोग, मुराद : दुआ, मुब्तिला : परेशान, नामुराद : गलत सोच वाले आदमी, रोजे-रौशन : दिन का उजाला

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh