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बब्बर शेर

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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तुमसा कोई दूसरा ज़मीं पर हुआ,
तो रब से ये ही शिकायत होगी.
एक तो झेला नहीं जाता हम से
दूसरा आ गया तो क्या हालत होगी?
वाह..वाह..वाह..वाह..



मेरे दिल ने कहा की सूरज को पकड़ लूँ……
मेरे दिल ने कहा की सूरज को पकड़ लूँ……
गया भी था मगर रात हो गई.
वाह..वाह..वाह..वाह..


गुलाब को भी कमल बना देते,
उसकी एक अदा पे ग़ज़ल बना देते.
कमबख्त मरती नहीं हैं लार्कियाँ हम पे,
वरना अपने शहर में भी ताज-महल बना देते.
वाह..वाह..वाह..वाह..


अँधा हमें शहर का रस्ता बता रहा है,
लंगड़ा हमें रह पे चलना सिखा रहा है.
वो खुद को बता रहा है प्रेम का पुजारी,
जो अपनी प्रेमिका से राखी बंधा रहा है.
वाह..वाह..वाह..वाह..


जी तो करता है तेरी जुल्फों को चूम लूँ,
जी तो करता है तेरी जुल्फों को चूम लूँ,
मगर डरता हूँ के उसमें जूँ न हो…
वाह..वाह..वाह..वाह..


इतनी रात गए कब्र क्यों खोद रहा है ग़ालिब,
इतनी रात गए कब्र क्यों खोद रहा है ग़ालिब,
ला फावड़ा मुझे दे..
वाह..वाह..वाह..वाह..


हम उनकी गली से गुज़रे अजीब इत्तेफाक था,
उन्होंने फूल तो फेंका, गमला भी साथ था..
वाह..वाह..वाह..वाह..


आज फलक पे सितारे ऐसे चमक रहे हैं…
आज फलक पे सितारे ऐसे चमक रहे हैं…
जैसे कल चमक रहे थे…
वाह..वाह..वाह..वाह..

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