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ऐ दिलफ़रेब हसीं……..(ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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ऐ दिलफ़रेब हसीं तू मुझे अब ले चल कहीं,
उसकी बेवफ़ाई के सिवा याद कुछ आता नहीं.

Painting
उनकी यादों के नक़ूस मैं मिटा दूंगा अगर
तड़प-तड़प के मैं जो मर न जाऊं आज यहीं.


ज़िन्दगी जीने के वास्ते ये दिल गवारा न मुझे
ये धड़कने से पहले तेरा नाम न भूल जाए कहीं.


कर लिया तसव्वुर मुर्दा मुझको अब ज़माने ने
सूरत नाआशना हुआ अब कोई पहचाने नहीं.


मेरी मुरादों का गला घोंट कर तू गया है
जिंदा हूँ मैं तो मगर मुझे इसका एहसास नहीं.


“राज” तू चल पड़ा है किस रह पर ये देख
अपनी मंजिल का डगर पीछे छोड़ आया कहीं.

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