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दिल के हाथों मज़बूर सभी (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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दिल के हाथों मज़बूर सभी, जीते हैं कभी मरते हैं कभी
मैं भूला राह जो मंजिल का,लौटा हूँ सफ़र से अभी-अभी.


दिल तोड़ दिए और दबे पाओं मेरी दुनिया से वो चले गए
उजड़ी दुनिया का हाल देख मैं रोता रहा हूँ जभी-तभी.


तेरे प्यार ने मुझे बे-हाल किया,सारी दुनिया से तोड़ दिया
मुझपर लोगों ने रहम किया,मजाक बनाते हैं मेरा सभी.


ऐ काश तेरा दिल टूटे कभी,तुझको भी ये एहसास मिले
दिल टूटे तेरा तुझे पता चले, आशिक़ जीते हैं कैसे सभी.


तू भी अब सदा बेचैन रहे,कोई ऐसा तुझे महबूब मिले
ये दर्द-ए-दिल न तुझे जीने दे,मरने भी ना दे तुझे कभी.


यूँ “राज” तेरा हमदर्द ही था,पर वो भी अब बेदर्द हुआ
ऐ शम्मा बुझे तू इस क़दर,रौशन ना हो पाए तू कभी.

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