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तुम जो बोते हो बीज़ नफ़रत का (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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तुम जो बोते हो बीज़ नफ़रत का गैरों के लिए
अपनों के लिए तुम प्यार कहाँ से लाओगे ?


जो तुम बिछाते हो कांटे सब की राहों में
अपने राहों में तुम फूल कहाँ से पाओगे ?


दूसरों का जो तुम छीनते हो चैन-ओ-अमन
जानो खुद तुम दिल का सुकून कैसे पाओगे ?


न होगा कोई तुम्हारा जब इस दुनिया में
सर धुनोगे, रोओगे और पछताओगे.


आज तुम मारते हो माँ के पेट में बेटियाँ
ज़रा सोचो कल तुम बहुएँ कहाँ से लाओगे ?


“राज” तमन्ना है बहुत आगे तलक जाने की
तुझे खबर भी है के बस क़ब्र ही तक जाओगे.

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