एक मनमौजी की दास्तां
- 73 Posts
- 403 Comments
तुम जो बोते हो बीज़ नफ़रत का गैरों के लिए
अपनों के लिए तुम प्यार कहाँ से लाओगे ?
जो तुम बिछाते हो कांटे सब की राहों में
अपने राहों में तुम फूल कहाँ से पाओगे ?
दूसरों का जो तुम छीनते हो चैन-ओ-अमन
जानो खुद तुम दिल का सुकून कैसे पाओगे ?
न होगा कोई तुम्हारा जब इस दुनिया में
सर धुनोगे, रोओगे और पछताओगे.
आज तुम मारते हो माँ के पेट में बेटियाँ
ज़रा सोचो कल तुम बहुएँ कहाँ से लाओगे ?
“राज” तमन्ना है बहुत आगे तलक जाने की
तुझे खबर भी है के बस क़ब्र ही तक जाओगे.
Read Comments