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आ गई उनकी याद (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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देखो आ गई उनकी याद, लेके ये बरसात
उम्र भर का वादा था छोड़ दिया क्यों साथ.


हमने बढाया कदम तुम्हारी ओर चाहत में
तुम ने मौके पर खींच लिया क्यों अपना हाथ?


यादों की बरसात है, फिर से काली रात है
शायद उम्र भर न छोड़े पीछा ये काली रात.


तुम को क्यों कोसूं, बुरा मैं क्यों कहूं?
जब मेरी तकदीर ने ही दी मुझे ये मात.


“राज” तुझको बोलना पड़ता है सबसे क्यों?
यूँ तो बताने के काबिल ही नहीं ये बात.

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