एक मनमौजी की दास्तां
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थोड़ी सी जो पी ली हमने, सारा मुकाम हिल गया
दुनिया के गम तमाम हुए, जो एक जाम मिल गया.
चला था सोच के घर से ये मैकदे की तरफ
पियेंगे ख़ूब जो शाकी मेरा महबूब मिल गया.
यूँ तो बहुतों से शनाशाई थी शहर भर में
ख़ुशी मिली, जब बिछड़ा कोई दोस्त मिल गया.
वो मिलेंगे हमें, उम्मीद न थी हम को मगर
मगर मिल कर लगा, अपना भी अब नसीब खिल गया.
“राज” तुम से बिछड़ के यूँ लगा दुनिया ख़तम हुई
जीने की राह ख़त्म हुई मरने का बहाना मिल गया.
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