एक मनमौजी की दास्तां
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हम को भी कोई प्यार करता तो कितना अच्छा होता
हमारा भी कोई ख्याल रखता तो कितना अच्छा होता.
मैं तुम से इश्क का इज़्हार करता, तुम शर्मा जाते
मेरे दिल की ज़ज्बात कोई सुनता तो कितना अच्छा होता.
किसी के सपने में आकर सारी रात उसे जगाता
कोई मेरे भी ख़्वाब बुनता तो कितना अच्छा होता.
मैं जब तकलीफ में होता, वो भी बेचैन सा होता
ग़म से सर अपना धुनता तो कितना अच्छा होता.
“राज” तुम भी देखो इस मुहब्बत का अंजाम
गर तेरा हमदम न कोई बनता तो कितना अच्छा होता.
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