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ये अर्क-ए-इश्क है जानेमन (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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दोस्ती करते हैं सब निभाता है कोई-कोई

मुहब्बत में वफ़ा का चलन दिखाता है कोई-कोई॥


कुछ रास्ते जो गलत से हैं चल पड़ते हैं बहुत लोग

फिर लौट कर उन रास्तों से आ पाता है कोई-कोई॥


हम जा चुके उन बहारों की रानाईयों से दूर

इस बहार के अदम जिंदगी बिताता है कोई-कोई॥


सब दूरियाँ-नजदीकियाँ तबदील हो गईं हैं अब

ये रास्ते हैं मुश्किल बड़े, गुज़रता है कोई-कोई॥


वो ग़र्क हो गया है “राज” जिसने भी है उसको पिया

ये अर्क-ए-ईश्क है जानेमन, उभरता है कोई-कोई॥

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