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मैंने मुंह को क़फ़न में छुपा लिया (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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मैंने मुंह को क़फ़न में छुपा लिया
तब उन्हें मुझसे मिलने की फुर्सत मिली
हाल-ए-दिल पूछने जब वो घर से चले
रास्ते में उन्हें मेरी मय्यत मिली.


वो ज़फ़ा करके भी क़ाबिल-ए-कद्र हैं
मुझको मेरी वफ़ा का सिला ये मिला
जीते जी मैं तो रुसवा रहा उम्र भर
बाद मरने के भी मुझको तोहमत मिली.


मेरी मय्यत को दीवाने की लाश है
ऐसा कह कर शहर में घुमाया गया
इस तरह उनको शोहरत खुदा की क़सम
मेरी रुसवाइयों की बदौलत मिली.


एक ही शाख पर साथ दो गुल खिले
चाल क़िस्मत की लेकिन ज़रा देखिये
एक गुल क़ब्र पर मेरी शर्मिंदा है
एक को उनकी ज़ुल्फों में इज्ज़त मिली.

आभर:

चन्दन दास जी (from Internet)

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