एक मनमौजी की दास्तां
- 73 Posts
- 403 Comments
एक रिश्ता था जो टूट चुका
उम्मीद का दामन छूट चुका।
मेहमाँ दिल के अब चल दिए
साँसों का सहारा छूट चुका॥
इस सच ने मुझे झकझोर दिया
किस मोड़ पे लाके छोड़ दिया।
पहले मेरी की खुशियाँ लूटी
मेरे दिल का क़रार भी लूट चुका॥
हम बैठे रहे उम्मीद लिये
यूँ ही सारी ज़िन्दगी जिये।
तकदीर की लकीरें मिट चुकीं
मुक़द्दर कब का रूठ चुका॥
बदनाम करके घर फूँक दिया
ज़ज्बात पे मेरे थूक दिया।
फरियाद की घड़ियाँ ख़त्म हुईं
“राज” तेरा ज़नाज़ा छूट चुका॥
Read Comments