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बदला बदला सा……….(कविता)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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ये कौन सा मुक़ाम है, ये कैसी घड़ी आ गयी
लगता है आज का हर इन्सान बदला बदला सा.


तहरीर में दिखती नहीं, तस्वीर में दिखती नहीं
शायर ने रख दिया है उनवान बदला बदला सा.


इक दुसरे को देख कर जलने लगे हैं इंसां
लगा के भेस आया है हैवान बदला बदला सा.


आग़जे-मुहब्बत है ऐसी के देख कर ये
लगता है इसका होगा अंज़ाम बदला बदला सा.


हैवानियत भरी है, मगरूर हो गए हैं
मक़सद के लिए रखा है नाम बदला बदला सा.


फ़नकार ने बनाई यूँ तस्वीर बहुत अच्छी
पर उसको मिला है “राज” ईनाम बदला बदला सा.


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