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मुहब्बत मर नहीं सकती (ग़ज़ल)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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हजारों दुःख पड़े सहना मुहब्बत मर नहीं सकती,
है तुम से बस यही कहना मुहब्बत मर नहीं सकती.


तेरा हर बार मेरे ख़त को पढना और रो देना
मेरा हर बार लिख देना मुहब्बत मर नहीं सकती.


किया था हम ने कैम्पस की नदी पर एक हसीं वादा
भले हम को पड़े मरना मुहब्बत मर नहीं सकती.


जहाँ में जब तलक पंछी चहकते उड़ते फिरते हैं
है जब तक फूल का खिलना मुहब्बत मर नहीं सकती.


पुराने अहद को जब जिंदा करने का ख्याल आये
मुझे बस इतना लिख देना मुहब्बत मर नहीं सकती.


वो तेरा हिज्र की शब् फोन रखने से ज़रा पहले
बहुत रोते हुए कहना मुहब्बत मर नहीं सकती.


अगर हम हसरतों के कब्र में ही दफ़न हो जाएँ
तो ये कुत्बों पे लिख देना मुहब्बत मर नहीं सकती.


पुराने राब्तों को फिर नए वादे की ख्वाहिश है
ज़रा एक बार तो कहना मुहब्बत मर नहीं सकती.


गए लम्हात फुर्सत के कहाँ ढुंढूँ उन्हें मैं “राज”
वो पहरों हाथ पर लिखना मुहब्बत मर नहीं सकती.

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