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कबाब में हड्डी (हास्य-कविता)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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तुझे देखने को ये दिल बेताब है

पर खिड़की पे खड़ा तेरा बाप है।


कभी इत्तेफ़ाक़ से जो नज़र मिल भी जाए

तो समझो सारा दिन खराब है।


कभी उसकी बहनें कबाब में हड्डी थीं

मगर अब हड्डी में फँसा कबाब है।


मुझे डरा धमका के सीधा कर लेंगे

तेरे भाइयों को आया ये ख्वाब है।


लाओ मेरे छुट्टे पैसे वापस कर दो

अभी चुकाना तुम्हें बहुत हिसाब है।


दिलबर क्या यही हैं तेरे प्यार की सौगातें?

बिखरे बाल, घिसे जूते, फटी जुर्राब है।


घर वाले गर पूछें कहाँ जा रही हो?

कहना सहेली की तबीयत खराब है।


आइ हो , दो चार घड़ियाँ बैठो तो सही

रिक्शे का ड्राइवर कौन सा नवाब है।


“राज” तुम खुद को समझते क्या हो?

याद उसका, यही मेरा जवाब है॥


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