Menu
blogid : 1994 postid : 60

मैं शिकार हूँ किसी और का (हास्य-कविता)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
  • 73 Posts
  • 403 Comments

मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है

मुझे जिसने बकरी बना दिया वो भेड़िया कोइ और है ।


कई सर्दियॉ भी ग़ुज़र गईं मैं उसके काम न आ सका

मैं लिहाफ़ हूँ किसी और का मुझे ओढ़ता कोई और है ।


मुझे चक्करों में फँसा दिया मुझे इश्क ने तो रुला दिया

मैं माँग हुँ किसी और का मुझे मांगता कोइ और है ।


मेरे रोब में तो वो आ गया मेरे सामने तो वो झुक गया

मुझे पिट के ये ख़बर हुई मुझे पीटता कोइ और है ।


जो गरजते हैं वो बरसते हों कभी हम ने ऐसा सुना नहीं

यहाँ भोंकता कोइ और है और काटता कोइ और है ।


अज़ब आदमी है ये “राज” भी उसे बेक़सूर ही जानिए

ये डाकिया है जनाबे मन, इसे भेजता कोइ और है ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh