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माँ (कविता)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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न शिकायतें न गिला करे,

कोइ ऐसा सख़्श भी हुआ करे-

जो मेरे लिये ही सजा करे

मुझ ही से बातें किया करे-


कभी रोये जाये वो बेपनाह

कभी बेतहाशा उदास हो

कभी चुपके चुपके दबे क़दम

मेरे पीछे आ कर हँसा करे


मेरी क़ुर्बतें, मेरी चाहतें

कोइ याद करे क़दम क़दम

मैं लम्बे सफ़र में हूँ अगर

मेरी वापसी की दुआ करे ।

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