एक मनमौजी की दास्तां
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हर कसम तोड़ कर वो इस तरह चले गए,
जैसे जान चली गई हो रूठ कर हम से-
कोशिश जो की ये पूछ्ने की जब हम ने,
तो लगा जैसे हों वो बेखबर हम से-
हमारी इन हालात के ज़िम्मेदार हैं वही,
फ़िर भी करते हैं बात मिलाकर नज़र हम से-
बे-असर हो गईं हैं सारी तदबीरें ,
छिन गई है सारी असर हम से-
सुन के ये बात उनके लब से ‘राज’
छूट गया उनको पाने का सबर हम से-
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