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हाल-ए-दिल(कविता)

एक मनमौजी की दास्तां
एक मनमौजी की दास्तां
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हर कसम तोड़ कर वो इस तरह चले गए,

जैसे जान चली गई हो रूठ कर हम से-

कोशिश जो की ये पूछ्ने की जब हम ने,

तो लगा जैसे हों वो बेखबर हम से-

हमारी इन हालात के ज़िम्मेदार हैं वही,

फ़िर भी करते हैं बात मिलाकर नज़र हम से-

बे-असर हो गईं हैं सारी तदबीरें ,

छिन गई है सारी असर हम से-

सुन के ये बात उनके लब से ‘राज’

छूट गया उनको पाने का सबर हम से-

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